शनिवार, 29 नवंबर 2008

बिना ब्रेक के ख़बर.....


बहुत दिनों के बाद ये ख़बर बिना ब्रेक के थी. मुंबई पर हुआ आतंकी हमला ख़बरिया चैनलों को उनके सरोकारों की याद दिला गया....बहुत दिनों के बाद पत्रकारों को कुछ करने का संतोष मिला होगा. ये केवल एक आतंकी घटना को कवर करने की बात नहीं थी...ये एक मिशन था. मिशन एकजुटता का...मिशन मुश्किल वक़्त में देश को एक साथ खड़ा करने का. अपनों को खोने वालों को ये भरोसा दिलाने का...कि उनका दर्द सौ करोड़ लोगों का दर्द है. बुधवार,..26 नवंबर की रात से लेकर 28 की शाम तक और उसके बाद अगली सुबह शहीदों के अंतिम संस्कार तक....ख़बरें टूटी नहीं...और देश को एकजुट करती गईं...कुछ दिनों पहले सियासत ने मुंबई के बहाने देश को बांटने की कोशिश की थी....लेकिन मुंबई पर जब ख़तरा आया तो पूरा देश उठ खड़ा हुआ...

कोई काम कहीं भी कर रहा हो...इस ख़बर पर सबकी नज़र थी....सबने ख़ुद को ख़बरिया चैनलों के क़रीब बनाए रखने की कोशिश की. पूरा देश टकटकी लगाए देख रहा था. अब आगे क्या होगा....कोई नहीं जानता था..लेकिन जानना हर कोई चाहता था. भूत और भविष्य बताने वाले लोगों को लेकर जो आकर्षण होता है कुछ उसी तरह का भाव मीडिया के प्रति भी रहा है. ये मीडिया की ताक़त है...इसलिए क्योंकि वह वर्तमान की तस्वीर पेश करता है. इसलिए लाइव न्यूज़ के अलावा कुछ नहीं चला. एलेवंथ आवर शब्द का मिथक भी टूटा हुआ था.

ऐसा नहीं है कि ख़बरों की होड़ में टीआरपी कहीं पीछे छूटी हुई थी. हिंदी के सबसे बड़े टीआरपी मास्टर ने बुधवार की रात अपने ऑफिस में ही ग़ुज़ारी. उनके सामने मुश्किल विजुअल की थी. सो दूसरे चैनलों से काम चलाया गया. कीचड़ के खेल में दामन को सफेद बनाए रखने के लिए ऐसे हेडर लगाए गए कि दर्शकों की नज़र विजुअल्स पर अटके ही नहीं. और ये आइडिया काम भी कर गया...रात भर की मेहनत सुबह रंग लाई...जब एक कथित आतंकी का फोन दफ्तर में आया. और इसके बाद तो फिर पूछिए मत. चैनल के पास टीआरपी की होड़ में बने रहकर होटल ताज के सामने अपने संवाददाता को पहुंचाने का पूरा वक्त मिल गया. बाद में वहां उसकी ओबी वैन भी तैनात नज़र आई.

बाक़ी चैनलों में भी कहानी कुछ ऐसी ही थी. ताज होटल के सामने से कई चैनलों ने अपने कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण किया. हिंदी के सबसे बुद्धिजीवी चैनल ने इस मौक़े पर साबित करने की कोशिश की कि उसे भी 'झनाक-झन' जैसे साउंड एफेक्ट के साथ पैकेजिंग करवानी आती है. शायद पहली बार उसने इस तरह के प्रयोग जमकर किए. ये पहली बार था कि इस चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज़ फुल स्क्रीन टेक्स्ट के साथ दी.

अंग्रेज़ी चैनलों ने न केवल विजुअल्स ब्रेक किए..बल्कि ख़बरों को पेश करने के लिहाज से भी उन्हें दाद देनी होगी. नरीमन हाउस में एनएसजी की अंतिम कार्रवाई के दृश्य सबसे पहले एक अंग्रेज़ी चैनल पर ही दिखाए पड़े. उसके एंकर की भाषा एक आम भारतीय के जज़्बे को बयां कर रहे थे....आम लोगों के प्रति वही सरोकार...वही भाव-भंगिमा....अंग्रेज़ी चैनलों को जड़ से कटा हुआ बताने वालों को अब नए सिरे से सोचना होगा....

मीडिया ने इस बार अपनी बड़ी भूमिका अदा की है. नरीमन हाउस फतह कर लौट रहे जवानों को सलाम करते लोगों में पत्रकारों की बड़ी फौज थी. एक हाथ में चैनल का बूम लिए दूसरे से हाथ हिलाते ख़बरनवीस...आम लोग सांसे थामे ख़बरिया चैनलों को देख रहे थे. जहां ये चैनल आ रहे थे....बीच की दो रात किसी को भी नींद नहीं आई.

कई बार सुना....लोग कहा करते थे...इतने चैनलों को देखेगा कौन...होटल ताज से लेकर नरीमन हाउस में चली आतंक-विरोधी कार्रवाई की कवरेज ने इसका जवाब दे दिया है. जवाब ये...कि सौ करोड़ का देश सौ ख़बरिया चैनलों को आसानी से पचा सकता है. बशर्ते उसे पूरी ख़बर अलग नज़रिए से मिले. इस बार ख़बरिया चैनलों ने देश को जोड़ने की भी कोशिश की. दो दिन बाद सभी पुराने एजेंडे पर वापस लौट जाएंगे...लेकिन इससे इन दो दिनों की अहमियत कम नहीं होगी.

3 टिप्‍पणियां:

sandeep sharma ने कहा…

good theam..

Udan Tashtari ने कहा…

इस दुखद और घुटन भरी घड़ी में क्या कहा जाये या किया जाये - मात्र एक घुटन भरे समुदाय का एक इजाफा बने पात्र की भूमिका निभाने के.

कैसे हैं हम??

बस एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खुद के सामने ही लगा लेता हूँ मैं!!!

बेनामी ने कहा…

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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं"....