गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

नासमझ कौन है?


लगातार पांचवें हफ्ते महंगाई की दर गिरावट पर है. इस ख़बर ने मनमोहन सिंह को बड़ी राहत दी होगी. विधानसभा चुनाव के नतीजों की वजह से नींद ऐसे भी अच्छी आ रही थी,...अब और सुकून मिला होगा. .पीएम को पहले डर रहा होगा कि कहीं आम लोग बेलगाम क़ीमतों से प्रभावित होकर कांग्रेस नीत सरकार के ख़िलाफ वोट न डाल दें....लेकिन ये आशंका अब ख़त्म हो गई होगी. अब पीएम मान के चल रहे होंगे कि आम लोगों को उनकी गंभीर कोशिशें भा गईं. लोगों ने ये समझ लिया कि सरकार को जो करना था वो कर रही है...और बहुत कर रही है. उन्हें तो यही लग रहा होगा कि जनता के सोचने का स्तर ऊंचा उठ गया है...वो उनकी बेबसी समझ रही होगी...उसे भी पता है कि ओपेक देश तेल की क़ीमतों को कम करने की गुहार नहीं सुनते...वो अपने लिहाज से काम करते हैं.

हम कोई हवाई क़िले बांधने की कोशिश नहीं कर रहे. बल्कि पीएम और उनके सहयोगियों की कार्यशैली के आधार पर उनकी वर्तमान मन:स्थिति का अंदाज़ा लगा रहे हैं. आप पूछेंगे कि एक व्यक्ति विशेष के मन के बारे में सपाट ढंग से ऐसा कैसे कहा जा सकता है. आपका कहना बिल्कुल ठीक है...इसलिए हमने कहा...ऐसी कोशिश कर रहे हैं.

चलिए मुद्दे पर आते हैं. भारत में शहर हों या गांव,...अगर एक औसत मतदाता की बात करें तो ज़्यादातर को ये पता भी नहीं होगा कि ये महंगाई दर कम कैसे हो रही है. कोई जानने की कोशिश भी नहीं करता...करता है तो भी समझ नहीं पता. अरे भई! जब सारी चीज़ें महंगी हैं तो फिर ये महंगाई की दर नीचे कैसे जा रही है... और अगर दुनिया भर के उतार-चढ़ाव के कारण ऐसा हो रहा है तो हम इसे महंगाई का अपना मीटर क्यों मानें. और ये जो मीटर है...वो भी हफ्ते दो हफ्ते पीछे का होता है....ठीक-ठीक याद रखना भी मुश्किल. मान लीजिए हफ्ते-पखवाड़े भर पहले महंगाई जितनी थी...उसका परिणाम ये महंगाई का मीटर मौजूदा वक़्त में बताता है...तो फिर इसका हिसाब रखने का मतलब क्या है.

अब अगर क्रूड ऑयल के सस्ता होने से भारत में महंगाई की दर गिर गई...तो इसमें सरकार काहे का ढोल पीट रही है. पहले तो सब कह रहे थे...हमारा दोष नहीं है...हम क्या कर सकते हैं....हमारे वश की बात नहीं है...तो फिर अब इसके पीछे सरकार की गंभीर कोशिशों को श्रेय देने की बात कहां से आ गई. ख़तरा ये भी बरक़रार है कि जुलाई के बाद चार महीनों में तिहाई क़ीमत पर आया कच्चे तेल का दाम अगर अगले चार महीनों में फिर ऊपर चढ़ गया तो क्या होगा ?

अब..जनता परिपक्व हो रही है या देश के कर्ता-धर्ता और भी नासमझ....ये बात समझना मुश्किल नहीं.

1 टिप्पणी:

Vinay ने कहा…

बहुत अच्छे!