शनिवार, 6 सितंबर 2008

इस बर्बादी के किरदार ?

हंसने-मुस्कुराने पर वक्त पाबंदी नहीं लगाता,..इसके मौक़े हर जगह हैं. पर कहीं-कहीं चाह कर भी आप हंस नहीं सकते,..विश्वास नहीं होता....तो कोसी के प्रलय से पीड़ित लोगों के पास पहुंचिए...चारों तरफ दर्द ही दर्द. दर्द बहुत गहरा है इसलिए चीख भी ऊंची है.

पानी से भरे गांव में ऊंची जगह बनी एक घर की छत पर पचास लोग शरण लिए हुए हैं,...चौदह दिन बीत गए,...जो कुछ बचा था,...लोगों ने आपस में बांटकर जिंदा रहने की कोशिश की...पर बीमार पड़े एक युवक को बचाया नहीं जा सका. उसकी लाश को जलाने के इंतज़ाम नहीं हैं,...कोई नाव नहीं,...मोटर बोट झांकने तक नहीं आई...आकाश के रास्ते भी राहत की गड़गड़ागट सुनाई नहीं पड़ी...ऐसे में लाश वहीं रखी है,..तीन दिन हो गए. बदबू आ रही है...दो दिनों से हो रही बारिश के बाद कई बीमार हो गए हैं....वे भूखे हैं,..गंदा पानी पी-पीकर अब तक बचे हैं,..पर शरीर अब जवाब दे रहा है.,,..ये एक संदेश है,.. सहरसा में मदद की गुहार कर रहे एक पिता ने अपने बेटे का दो दिन पुराना ये संदेश जब पत्रकारों को सुनाया,...तो सबके रोंगटे खड़े हो गए.

कोसी की धारा ने कई किंवदंतियों को बदल दिया है,...किस कदर तकलीफ झेलकर मनुष्य ज़िंदगी की लड़ाई लड़ता है,...इससे जुड़ी कहानियां उत्तर-पूर्वी बिहार के प्रभावित इलाक़ों में सैकड़ों लोगों की ज़ुबान पर है....आप सुन नहीं पाएंगे,...दर्द को साझा करने वाली आपकी भावनाएं जवाब दे जाएंगी.

बहुत कुछ बदल दिया है कोसी ने,,...जो नहीं होना चाहिए था,..वो भी किया है कोसी ने,...कोसी उद्दंड हो गई है,...या उसने अपने ऊपर की जा रही ज्यादतियों का जवाब दिया है,...उसकी थाह लेने में अभी देर लगेगी...पर इतना तय है कि इस बार....उसकी धारा ने बिहार को समाजवाद का पाठ पढ़ा दिया है,...गरीब का कुछ कर नहीं सकती थी,....सो,..अमीरों को ग़रीब बना दिया है. पर क्या यही रास्ता था ?

ये सवाल इस नदी से मत पूछिए,...पूछिए इसे बांधने वालों से,...सवाल कोसी भी पूछ रही है,...कि उसका मान-मर्दन होता रहा,... पर नदी के तीर बसने वाले चुप क्यों रहे. जवाब सोचिए,..कहीं इस बर्बादी के किरदार आप और हम भी तो नहीं?

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सही है....


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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

dinesh kandpal ने कहा…

अच्छा लिखा है अमित,अपनी संवेदनाओं को हमेशा ज़िंदा रखना, .............

Satyajeetprakash ने कहा…

श्रद्धेय भाई साहब,
अपने घर को यूं ही खाली नहीं छोड़ दीजिए, वरना कोई और हथिया लेगा.