गुरुवार, 28 अगस्त 2008
ऐसे ही लटकाओ आतंकियों को...
आतंकियों ने जम्मू में बुधवार की सुबह से ही ख़ून की होली खेलनी शुरू कर रखी थी...घूम-घूम कर शहर भर में गोलियां बरसाईं. जो सामने आया,..उसे भून कर रख दिया। इसके बाद एक घर में महिलाओं और बच्चों को बंधक बनाकर ख़ुद के लिए सुरक्षित रास्ता तलाशने लगे. वे जानते थे कि भारत जैसे देश में इसकी पूरी संभावना है. पर ऐसा नहीं हुआ. सेना ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। बुजदिलों को मौत की आहट साफ सुनाई दे रही थी। इसलिए उन्होंने अपने पास मौजूद गोला बारूद का भरपूर इस्तेमाल किया। पर कब तक...जान लेने या देने की तैयारी करके आए जवानों को साफ संदेश मिला था, ..संदेश था सफाए का. बहुत हो चुका...संदेश था मौक़े पर ही आर या पार कर देने का. आख़िरकार आतंकियों को ढेर करने का सिलसिला शुरू हुआ. एक दुस्साहसी आतंकी ने जैसे ही मकान से बाहर निकलकर गोलियां दागनी शुरू की. मकान की छत पर निशाना साधे बैठे जवान ने उसे अपनी गोलियों का निशाना बना लिया। इसके बाद उसकी लाश को जवानों ने छत पर खींच लिया। टीवी चैनलों पर ये दृश्य दिखाए जा रहे थे। बहुत दिनों के बाद ऐसी तस्वीर दिखी थी। बांग्लादेश राइफल्स(बीडीआर) ने एक बार बीएसएफ के जवानों की लाशें बांस में बांधकर जानवरों की तरह लटकाकर भारत भेजी थीं...तब देश का ख़ून खौल उठा था. पर नेता चुप्पी साधे रहे. देश समझने लगा कि ये भारत की नीति है. हमारी पुश्तैनी नीति है. पर इन दृश्यों ने कुछ तो जताया है. संकेत समझे जा सकते हैं कि अब सहने की सीमा पार हो गई है. और अब हर दुस्साहस का ऐसा ही जवाब दिया जाएगा.