राजस्थान की राजधानी जयपुर से चालीस किलोमीटर दूर कालाडेरा गांव में इन दिनों हलचल है. हर विचारधारा के लोग यहां एकजुट दिख रहे हैं. आंदोलन है कोका-कोला के ख़िलाफ. ठंडा मतलब कोका-कोला,..यहां अब लोगों की समझ में नहीं आ रहा बल्कि लोग कह रहे हैं,...बर्बादी मतलब कोका-कोला.
वे इसके स्वाद पर उंगलियां नहीं उठा रहे,..न ही इसमें कीटनाशकों की मौजूदगी उनके लिए मुद्दा है. उनके मन में आशंकाएं तभी से थीं जब कंपनी 1999 में यहां आई थी. पर कोक ने तब उन्हें मना लिया था. खेती और पशुपालन कर रोज़ी कमाने वाले स्थानीय लोगों से रोज़गार का वायदा किया गया था. उन्हें कई विकास के सपने दिखाए गए थे.
पर अब ग्रामीण कोका-कोला के ख़िलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं. उनका कहना है कि इस प्लांट के बिना बंद हुए हम चैन से नहीं बैठेंगे. दरअसल इस प्लांट की वजह से उनकी रोज़ी पर संकट है. लोगों का कहना है कि पिछले नौ सालों में यहां का भूजल-स्तर इतनी तेज़ी से नीचे गया है कि खेती संभव नहीं. घाटे की वजह से यहां का लगभग हर किसान कर्ज़दार हो चुका है. ज़मीन से पानी खींचना ख़ासा महंगा है. कभी बीस से तीस फीट पर मिलने वाला पानी बरसात के इस मौसम में अब सवा सौ फीट से भी नीचे जा चुका है.
कहते-कहते वे थक गए पर कंपनी ने न तो उन्हें मुआवज़ा दिया न ही सरकार की तरफ से उन्हें मदद का भरोसा मिला. हद तो यह है कि सत्ताधारी भाजपा के नेता उल्टे किसानों से ही बीच का रास्ता निकालने की बात कह रहे हैं. बाक़ी की बात छोड़िए. ये स्वदेशी की बात करनेवाली पार्टी की स्थिति है. राजनीति गरम है,..पर उसमें गंभीरता नहीं. लेकिन किसानों को ख़ुद पर विश्वास है. वे सड़कों पर उतर रहे हैं,...गांधीवादी से लेकर वामपंथी और दक्षिणपंथी तक.
कोका-कोला बेवरेजेज इंडिया लिमिटेड के स्वामित्व में ये प्लांट यहां लगा है,... कंपनी ने स्थिति के आकलन का ज़िम्मा ' टेरी' नाम की संस्था को सौंपा,...इसकी रिपोर्ट आ चुकी है. हैरत की बात है कि इसमें किसानों के आरोपों को सच बताया गया है. रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि इलाक़े में भूजल-स्तर साल-दर-साल किस तरह नीचे गया है. इसके बाद कहने को कुछ नहीं बचा है. पर सरकार और कोका-कोला दोनों का रूख़ इस मामले पर एक है. दोनों ही चुप हैं.
एक कुख्यात बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत के सुदूर गांव में पहुंचकर किसानों की रोज़ी को छीन रही है,...और सरकार चुप है. हद है. कोका-कोला मोटा लाभ कमाने के लिए जानी जाती है,...लोगों को शीतल पेय के नाम पर ज़हर पिलाने के लिए जानी जाती है. पर सरकार का साथ उसे ही मिल रहा है. इस लड़ाई में किसान अकेले हैं.
ये अपना देश है. नाम है हिंदुस्तान. यहां सत्तर प्रतिशत से ज्यादा लोग खेती पर आश्रित हैं. इस देश की आत्मा गांवों में बसती है. बचपन से हम सब ये सुनते आए हैं. और आज भी सुन रहे हैं,...एक लाइन और जोड़ लीजिए. भारत एक बहरा देश है,..उसे अपनी आत्मा की आवाज़ सुनाई नहीं देती.
शनिवार, 30 अगस्त 2008
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1 टिप्पणी:
सरकार का क्या वह तो बहुत बातों पर चुप है. उसे नोट चाहिए ताकि तुष्टिकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सकते. सिगरेट स्वास्थ्य से लिए हानिकारक है फिर भी बनती है. शराब से घर उजड़ता है, फिर भी बनती है, गुटका से कैंसर होता है फिर भी बनती है. बनती है तो बिकेगी क्यों नहीं. अब निर्णय जनता के हाथों में है.
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