शनिवार, 30 अगस्त 2008

ख़बर अभी अधूरी है

कोसी के आए उफान ने उत्तर बिहार का नक्शा बदल दिया है. बाढ़ का पानी उतरने दीजिए. तब पूरी हक़ीक़त सामने आएगी. हालात यहां तक कैसे पहुंचे. ये सब जानते हैं. पर तबाही कितनी हुई है...इसके बारे मुकम्मल तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.

नदी के किनारों पर आबादी बसती है. पर जब आबादी के बीच नदी आ जाए,..तो क्या होगा. बिहार में यही हुआ है. गांवों का दर्द कोई नहीं जानता. आसमानी तस्वीरें सबके पास नहीं है.


राज्य सरकार के अनुरोध को सुनने में केंद्र ने बिल्कुल देरी नहीं की. ऐसा पहले शायद ही हुआ हो...राज्य और केंद्र में सरकारें एक रहीं तो ऐसा हुआ है,..पर ज्यों की त्यों मांगें मानने के उदाहरण न के बराबर हैं.. साफ है कि बिहार में बहुत कुछ हो गया है... इतना कि अभी सच कह देने में सरकार को संकोच है. नीतीश और लालू के बीच लाख मतभेद हों,...पर दोनों इसे प्रलय की संज्ञा दे रहे हैं. प्रधानमंत्री ने तनिक भी देरी नहीं की. मुख्यमंत्री ने जो मांगा,.. केंद्र ने उसे हू-ब-हू स्वीकार कर लिया.

हम जो कहने की कोशिश कर रहे हैं,..उसे महज़ कयास न समझें....सबसे क़रीबी सच यही लग रहा है कि राज्य में भयंकर त्रासदी हुई है. और ये सबसे ज़्यादा गांवों में हुई है.


ये आपदा इतनी ही नहीं है जो दिख रही है,..या जो टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही है. अख़बारों में अपीलिंग छायाचित्र प्रकाशित होते हैं. टीवी चैनलों पर इससे ज्यादा पहलू दिखता है,..पर दिखेगा वहीं का,...जहां पत्रकार पहुंचेंगे. उनके लिए नाव से जाना ख़तरे से ख़ाली नहीं. मोटरबोट पर सवार होकर कितने लोग जा पाएंगे और कितने अंदरूनी इलाक़े में जा पाएंगे. सच यही है कि प्रभावित इलाक़ों के अधिकांश हिस्से में अभी राहतकर्मियों और ख़बरनवीसों को जाना है. वे जा नहीं पाए हैं.

शहरों में छतें लगभग सभी घरों में होती हैं. गांवों में ये गिनती के होते हैं. तो फिर अचानक आई बाढ़ के बाद लोग कहां गए होंगे. गांवों में नावें कहां थीं कि लोग सुरक्षित स्थानों पर समय रहते निकल जाते. अगर पानी अचानक बढ़ा होगा तो क्या हुआ होगा.

बिहार सरकार ने हर गांव में एक ऊंचे चबूतरे के निर्माण की बात कह रखी थी,..पर योजना को अभी पूरी तरह से अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका था. ऐसे में फौरी राहत के लिए लोगों के पास विकल्प सीमित थे. वे पेड़ों पर चढ़े होंगे,..एक घर की छत पर दर्जनों होंगे,...कौन जाने,..सैंकड़ों होंगे. पर कब तक इंतज़ार कर पाएंगे ये लोग. इनकी पीड़ा,..इनकी मुश्किलें मीडिया में कहां दिख रही हैं...पर ख़बर तो वहीं है. ऐसे में फिलहाल ख़बर अधूरी है.

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