सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

ये देश का दर्द है....


राहुल के मुर्दा शरीर को पुलिस के जवान उठाकर लिए जा रहे थे...चुपचाप देख रहा था मैं. मन में उलझन बड़ी थी....लग रहा था नैतिकता के व्यामोह में फंसकर तटस्थ रहने का अपराध कर रहा हूं...अगले ही पल देशहित और एकता की बात याद आई. महाराष्ट्र को देश की गौरवभूमि के रूप में देखता आया हूं....ये दृष्टि किसी व्यक्ति विशेष से कभी प्रभावित नहीं हो सकती. लेकिन दिल आज बेहद आहत है. एक बिहारी के रूप में राहुल की मौत का शोक मनाने का कोई मतलब नहीं है....ये देश भर का दर्द है.

राहुल!....हमें पता है कि घोर निराशा में तुझे कोई राह नज़र नहीं आई होगी...और तुम इस रास्ते पर चल पड़े....हमें पता है कि राज ठाकरे तुम्हारे आत्मसम्मान को धिक्कार रहा था...और तुमसे रहा नहीं गया...
हाथों में थामे पिस्तौल को भूल जाइए...उसके चेहरे को याद रखिए....एक स्वतंत्र देश के नागरिक के रूप में जीने की इच्छा उसकी भी रही होगी...और इसी वजह से उसकी जान गई.

बचपन से उसने आज़ादी का जश्न मनाया होगा....हर बार एक भारतीय के रूप में गर्व महसूस किया होगा....सीना तान के चलने वाले इस नौजवान ने जब बिहारियों को बिना दोष बार-बार लतियाते जाते देखा होगा...तो उसका ख़ून खौलना लाजिमी था. फर्क बस इतना था कि उसे ये भरोसा नहीं था कि राज ठाकरे के अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला देश में कोई बचा है...इसलिए उसने अपनी ताक़त पर ये लड़ाई लड़ने का फैसला किया...

प्रांतवाद के नाम पर राहुल को मारा गया....इसकी मुझे कोई वजह नज़र नहीं आती. राहुल की मौत हर किसी को हिलाने वाली है....ये एक बेरोज़गार की व्यथा है...ये चारों तरफ से गालियों की बौछार सुनने वाले प्रदेश का विद्रोह है....ये देश के दुश्मनों को अपनी बदौलत मिटा डालने के हौसले की कहानी है...राहुल की राह गलत थी....उसका साहस नहीं....उसका संदेश नहीं....

राज की जान लेने की कोई ज़रूरत नहीं...विरोध के रास्ते और भी हैं...लेकिन राष्ट्रहित को दांव पर लगाकर मराठा छत्रप बनने की दुराकांक्षा पालने वाले इस नेता के विरोध का इतना बड़ा साहस किसी ने पहली बार दिखाया है...राहुल की ग़लती बस इतनी थी कि वो देश के क़ानून को भूल गया था.

पुलिस के बारे में कुछ नहीं कहना...ये उसका चरित्र है....पुलिस को ऐसी स्थितियों से निबटने की न तो समझ है और न ही उसे कोई तरीक़ा ही नज़र आता है...चाहे वो महाराष्ट्र की हो या बिहार की.

नेता इसे राजनीतिक रंग न दें....कुछ करना है तो बिहार से महाराष्ट्र पहुंचकर वहां की जनता का साथ लें...राज ठाकरे को उसकी मांद में घुसकर बता दें कि देशहित की बात करने वाला असली शेर कौन है...देखें कि ये राज ठाकरे उनका क्या बिगाड़ता है...सब कुछ शांति से हो...विरोध पूरी तरह अहिंसक हो...तो महाराष्ट्र से खदेड़ दिए जाएंगे राज ठाकरे और उन्हें बचने की जगह बिहार में मिलेगी.

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

ये वानर कौन है?


लोग कह रहे हैं आज विजय दशमी है....तिथियों की गणना इस बात की तस्दीक कर रही है....रावण-दहन की औपचारिकता भी हर साल की तरह है...पर इस बार पता नहीं क्यों....मन से उल्लास नदारद है. मैं बीते रात देखे गए सपने को अब तक नहीं भूल पाया हूं....इसलिए मुझे तो जलने के बाद भी रावण अट्टहास करता नज़र आ रहा है....भय से सहमे लोगों के चेहरों पर उसकी छाया देख रहा हूं मैं...मेरी आंखें सुबह से ही खुली हैं...पर जो हक़ीक़त देख रहा हूं वो सपना लग रहा है....और सपना हक़ीक़त जान पड़ रहा है.. ....कल रात मैंने रावण से पूछा था कि वो इतना ख़ुश क्यों है.....उसने मुझे घूर कर देखा और हंस पड़ा.....मैंने अपना सवाल दुहराया...रावण ने कहा-धरती पर उसे कोई नहीं मार सकता....इसलिए क्योंकि ये सिर्फ राम के वश की बात है....अकेले वानरों के वश की बात नहीं. मैं सोच रहा था...ये वानर कौन है?