मोहनराव भागवत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरसंघचालक मनोनीत किया गया है. कुप्पाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन के दायित्व छोड़ने की घोषणा के साथ ही भागवत दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक संगठन के मुखिया बन गए हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बाक़ी संगठनों से एक मायने में बिल्कुल अलग है...और वो है अपनी विचारधारा के प्रति समर्पण.
सन् 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में इसकी स्थापना हुई थी...तब से अब तक 80 साल से ज़्यादा ग़ुज़र चुके हैं...लेकिन समय के साथ उसकी विचारधारा नहीं बदली. यहां तक की गिनती के परिवर्तनों को छोड़ दें तो संघ का गणवेश भी तकरीबन वही रहा...जो 1925 में था। कई लोगों को ये देखकर आश्चर्य होता है। नई पीढ़ी के युवाओं की बड़ी संख्या संघ से ख़ुद को जोड़ने में इसे एक बाधा की तरह देखती है....बावजूद इसके संघ ने इसमें कोई तब्दीली नहीं की।
सन् 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में इसकी स्थापना हुई थी...तब से अब तक 80 साल से ज़्यादा ग़ुज़र चुके हैं...लेकिन समय के साथ उसकी विचारधारा नहीं बदली. यहां तक की गिनती के परिवर्तनों को छोड़ दें तो संघ का गणवेश भी तकरीबन वही रहा...जो 1925 में था। कई लोगों को ये देखकर आश्चर्य होता है। नई पीढ़ी के युवाओं की बड़ी संख्या संघ से ख़ुद को जोड़ने में इसे एक बाधा की तरह देखती है....बावजूद इसके संघ ने इसमें कोई तब्दीली नहीं की।
भागवत की छवि की बात करें तो वह उदारवादी रही है. उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में संघ के प्रचारक के रूप में विभिन्न ज़िम्मेदारियों को निभाया. कोलकाता और पटना में भी वे काफी समय रहे. सरकार्यवाह बनाए जाने के बाद पटना में अपने अभिनंदन समारोह में उन्होंने विवेकानंद की पंक्तियों को उद्धृत किया था....”शक्तिशाली भारत का विचार करने पर हमारे सामने जिस देश की परिकल्पना उभरती है...उसके मुताबिक़ भारत का शरीर इस्लाम का होना चाहिए जबकि हृदय हिंदू.”
संघ के मुसलमानों के प्रति प्रचलित दृष्टिकोण से ये बात काफी अलग दिखती है. शरीर और हृदय की उपयोगिता को लेकर बहस-मुबाहिसे की पूरी गुंजाइश है लेकिन इससे एक बात साफ हो जाती है कि वैचारिक रूप से मुसलमानों को संघ अवांछित नहीं मानता।
संघ की शाखाओं की गिरती संख्या को क़ाबू में करना भागवत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। विभिन्न सामाजिक कार्यक्षेत्रों में संघ परिवार के संगठनों ने अच्छी-ख़ासी प्रगति की है...लेकिन जिस शाखा के माध्यम से संघ अपने परिचय का दायरा हर दिन बढ़ाता रहा है...उसकी संख्या तेज़ी से घटी है। इसको लेकर आरएसएस के भीतर हलचल है. शाखा संघ के विस्तार का आधार रही हैं...और इसकी अनदेखी किसी तरह से नहीं की जा सकती।
संघ किसी अकेले व्यक्ति के इशारे पर नहीं चलता है इसलिए इसकी संभावना न के बराबर है कि भागवत के आने से संघ के वैचारिक स्वरूप या उसके तेवर पर कोई फर्क पड़ेगा…लेकिन कोई भी संगठन अपने नेतृत्व से अप्रभावित नहीं रहता. इस लिहाज से भागवत सबकी नज़रों में रहेंगे.