शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

द्रोणाचार्य का ये हाल!



ओलंपिक के दौरान हर सुबह अख़बारों में छपी पदक-तालिका को लोग बड़ी उत्सुकता से देखते हैं. लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगती है. तब और भी कोफ्त होती है जब युगांडा और इथोपिया जैसे देश हमसे काफी आगे नज़र आते हैं. इसके पीछे की वजह को दुहराने की ज़रूरत नहीं. लेकिन ताज़ा कहानी सुनकर आप चौंक जाएंगे....अख़बारों में ये पढ़कर हैरत हुई कि तीरंदाज़ी के राष्ट्रीय कोच लिम्बा राम के पास सर ढंकने तक की जगह नहीं है. जयपुर में रहने वाले लिम्बा का ठिकाना फिलहाल एक विधायक के सरकारी निवास का गैरेज है.

उदयपुर ज़िले के एक गांव में जन्मे लिंबा अहरी जनजाति से ताल्लुक रखते हैं...जंगली इलाक़ों से शुरूआत कर तीरंदाज़ी के ज़रिए उन्होंने ओलंपिक का सफर तय किया. तीरंदाज़ी में देश का नाम रोशन करने पर उन्हें १९९१ में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया. लेकिन कहानी ये नहीं है,...दरअसल लिम्बा राम ने अब तक शादी नहीं की है,....इसके पीछे की वजह बिल्कुल अलग है. उन्हें नहीं लगता था कि आर्थिक रूप से वे परिवार का बोझ उठाने में सक्षम हैं. आज भी उन्हें यही लगता है...

तब जबकि वे तीरंदाज़ी के राष्ट्रीय कोच हैं. उनकी तनख्वाह बस इतनी है कि किसी तरह अपना ग़ुज़ारा हो जाय. १९९२ के बार्सिलोना ओलंपिक में वे कांस्य पदक से मामूली अंतर से चूक गए थे. उनके नाम विश्व रिकॉर्ड भी रहा है. ओलंपिक में तीन बार देश का प्रतिनिधित्व करने वाले इस द्रोणाचार्य का हाल सुनकर आपकी आंखें गीली हुए बिना नहीं रहेंगी. खेल के मैदान में हासिल उनकी उपलब्धियों से देश का सम्मान तो बढ़ा लेकिन लिम्बा राम की हैसियत नहीं बदली...उन्हें कभी घास काटने की नौकरी दी गई तो कभी चपरासी का काम करने को कहा गया.

बावजूद इसके उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं है. लिम्बा राम कहते हैं कि भारतीय होने को लेकर वे गर्व महसूस करते हैं और एक आम नागरिक के रूप में ज़िंदगी ग़ुज़ारने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या क्रिकेट के बारे में भी ऐसी कल्पना की जा सकती है,...

क्या आप सोच भी सकते हैं कि राष्ट्रीय टीम के कोच की ये हालत होगी....अगर होगी..तो क्या होगा? क्या बस इतने भर से इस ख़बर को भूल जाना चाहिए कि लिम्बा अपनी हालत से संतुष्ट हैं....उन्हें किसी से गिला-शिकवा नहीं.

एक रोचक तथ्य ये है कि राष्ट्रीय तीरंदाज़ी संगठन के अध्यक्ष लोकसभा में विपक्ष के धाकड़ नेता विजय कुमार मल्होत्रा हैं....उनका कहना है कि लिम्बा ने कभी इस बारे में शिकायत नहीं की. यानी नेताओं के लिए खेल,....बस राजनीति चमकाने का एक ज़रिया भर हैं....अगर ये बात सच नहीं होती तो क्या लिम्बा के मुंह खोलने का इंतज़ार किया जाता? लिम्बा ने अब भी मुंह नहीं खोला है,...उन्होंने बस पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया है.

९ जनवरी को उन्हें राष्ट्रीय कोच नियुक्त किया गया है...उनसे पहले ये ज़िम्मेदारी दक्षिण कोरिया से आयातित कोच के कंधों पर थी...लेकिन सरकार को उम्मीद है कि अगले साल दिल्ली में होनेवाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए वो खिलाड़ियों को इस तरह प्रशिक्षित करेंगे कि पदकों की झड़ी लग जाए.

लिम्बा कुछ नहीं बोल रहे...उनसे जो कुछ हो सकता है वो करने में लगे हैं. जैसा कि अब तक वे करते आए हैं...लेकि क्या आप और हम हक़ीक़त को जानने के बाद अगले साल पदक-तालिका में भारत का नाम ढूंढ़ने को इतने उत्सुक होंगे?

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