सोमवार, 9 मार्च 2009

जुग जिए से खेले फिर होली...होली है...

होली आ चुकी है...पर हुड़दंग नदारद है. दिल्ली में बिन हुड़दंग के होली देख तो सकता हूं,...पर महसूस करना मुश्किल है. अपने कमरे और फ्लैट तक सिमटी दुनिया में एक दिन की छुट्टी की ख़ुशी..होली की मस्ती पर भारी पड़ती है. इससे ज़्यादा चाह किसी की नहीं. वरना होली क्या...दीवाली क्या. जेब में बस पैसे रहने चाहिए. लेकिन गांवों में होली खेलने से बड़ी ख़ुशी दूसरी नहीं होती...इसे साल का सबसे बड़ा सौभाग्य माना जाता है. हर ज़ुबान से सुनेंगे...जुग जिए से खेले फिर होली...होली है. मतलब ये कि ज़िंदगी सलामत रही तभी होली दोबारा खेलेंगे...इसलिए जी-भर की मस्ती आज ही होनी चाहिए।

दोपहरी में हाइवे किनारे गिरे पलाश के फूलों को देखकर एकबारगी याद आई इसकी अहमियत. स्कूलों में सुना था पलाश के फूलों से रंग बनाए जाते हैं. पर यहां पलाश को कोई पूछने वाला नहीं. इसके फूल टायरों तले कुचलते चले जाते हैं...कोलतार की सड़क पर इन फूलों के बीच पड़ा बीज अपना अस्तित्व खो देता है..नए पलाश की कोई आस नहीं बचती।

ठीक इसी तरह ज़िंदगी की रफ्तार में हमें याद नही रहता कि अपनी विरासत को हम किस तरह भूलते जा रहे हैं...जिस मस्ती पर लगाम हमारे लिए बर्दाश्त से बाहर थी...घर के बड़े के ख़िलाफ बालमन विद्रोह कर बैठता था...आज बड़े होने पर उसे भूल जाना ही हम बेहतर समझते हैं. यही वजह है कि हमारी नई पीढ़ी को उसकी पहचान पता नहीं।

दिल्ली में आज अगर पुरबिया होली नहीं दिख रही...तो दोष किसका है? दरअसल हमने ही तो अपने बच्चों को जड़ों से दूर रखा...हाल ये हुआ कि भरे-पूरे घर में तमाम लोग ख़ुश होते हैं...लेकिन फ्लैट की खिड़की से बाहर झांककर हमारी सूनी आंखें अपने लिए ख़ुशी ढूंढ़ती रहती हैं...होली फिर आ गई है...पर होली खेलने का मतलब हमसे दूर हो गया है।

लेकिन....गांवों में ऐसा नहीं है...पछिया बयार चाहे जितनी बह रही हो...लेकिन संस्कार,..सलूक और ठेठ देसी अंदाज़ को मुरझाना इसके बस की बात नहीं. बाहर में यही अखरता है. कुछ भी पा लें आप...गांव तो गांव ही है...वो दूर ही रहेगा. चलिए एक दिन के लिए ही सही...उसकी याद की जाय...और मौक़ा तलाशा जाय अबकि छुट्टी में जड़ों की तलाश का.

4 टिप्‍पणियां:

Mohinder56 ने कहा…

आपको परिवार सहित होली के पर्व की शुभकामनायें. ईश्वर आपके जीवन में उल्लास और मनचाहे रंग भरें.

समयचक्र ने कहा…

आपको व परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाओ .

नीरज गोस्वामी ने कहा…

"दोपहरी में हाइवे किनारे गिरे पलाश के फूलों को देखकर एकबारगी याद आई इसकी अहमियत. स्कूलों में सुना था पलाश के फूलों से रंग बनाए जाते हैं. पर यहां पलाश को कोई पूछने वाला नहीं. इसके फूल टायरों तले कुचलते चले जाते हैं...कोलतार की सड़क पर इन फूलों के बीच पड़ा बीज अपना अस्तित्व खो देता है..नए पलाश की कोई आस नहीं बचती।"

वाह....कितना कडुआ सच लिखा है...पढ़ कर दिल उदास हो गया...आज के जीवन की आपाधापी में हम जीवन कैसे जिया जाता है ये भूलते जा रहे हैं....
चलिए फिर भी आप को होली की शुभकामनाएं .
नीरज

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुदर लगा ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।